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आज़ादी और देश के विभाजन के बाद से पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ हर रोज़ किसी न किसी कारण से धर्मनिरपेक्षता को खतरा महसूस होता है और जब से केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है तब से तो देश में हालात कुछ ऐसे दर्शाने की कोशिश हो रही है जैसे हर तरफ मारकाट मची हो आपातकाल का माहौल हो , किसी भी छोटी से छोटी घटना को भारत के तथाकथिक धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार और भारतीय मीडिया इस तरह से पेश करता है जैसे इसके बाद तो अब भारत का दूसरा विभाजन होने वाला है या अब अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचारों की सीमा पार हो गयी है , कोई घटना किसी भी राज्य या किसी क्षेत्र में हुई हो लेकिन जवाब की मांग सिर्फ एक ही राजनैतिक दल से की जाती है और भारत के ज़्यादातर राजनैतिक दल विधवा विलाप करते हुए प्रधानमन्त्री से अमुख बात पर सफाई देने की इस प्रकार जिद करते हैं जैसे प्रधानमन्त्री खुद उस घटना को अंजाम देने आये हुए थे ….
हाल ही में दादरी में हुई अख़लाक़ नाम के व्यक्ति की हत्या में भारतीय मीडिया और कथित सेक्युलरों ने जो एकतरफा रुख अख्तियार किया और घटना को जिस तरह पेश किया वो वाकई बेहद खतरनाक था ,निसंदेह देश के क़ानून और संविधान के मद्देनज़र किसी को भी किसी भी परिस्थिति में क़ानून अपने हाथ में लेने की इजाज़त कतई नहीं दी जा सकती , किसी को भी ये हक नहीं है कि किसी में जुर्म की सज़ा देने के लिए वो अपना मानसिक या शारीरिक बल इस्तेमाल करे , दादरी में जो कुछ भी हुआ वो दुखद था , लेकिन उस घटना को लेकर देश के ज़्यादातर राजनेताओं और मीडिया का कृत्य भी कम घ्रणित नहीं था ,महज़ अपने राजनैतिक हितों के लिए घटना की एकतरफा तस्वीर पेश कर समूची दुनिया में अपने ही देश की बदनामी करने का जो बेहूदा काम नेताओं ने किया उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है .
दादरी में क्या हुआ ये वहां के स्थानीय लोग और स्थानीय पुलिस अच्छी तरह से जानते हैं , और शायद वो लोग भी जो वहां जाकर हिन्दू अतिवादिता को लेकर छाती पीट रहे थे , वहां गाय को काटा गया था ,गाय के अवशेष भी मिले सबको पता है , गाय को लेकर देश के बहुसंख्यक समाज की क्या आस्थाएं और भावनाएं हैं ये भी सबको पता है , भीड़ गाय के अवशेष देख कर हिंसक हुई और एक हादसा हो गया , देश भर के सेक्युलर इकठ्ठा हो गए चूड़ियाँ फोड़ने को लेकिन किसी एक ने भी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की क्यूँ की हकीकत में वो लोग वहां सच के लिए आये ही नहीं थे ….
इस देश में सेक्युलारिस्म को लेकर जैसा दोगला रैवैया देखने को मिलता है वैसा कहीं नहीं, आप जन्माष्टमी पे किसी नियत जगह पर भगवान् की झांकी लगाने की कोशिश करेंगे तो उनकी भावनाओं को ठेस लगेगी , आप कांवर लेके कई स्थानों से निकल नहीं सकते , आप सरे आम लगाए जा रहे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारों का विरोध नहीं कर सकते आप किसी को योग करने के लिए कहेंगे तो सेक्युलरिज्म पर लम्बी बहसें शुरू हो जायेंगी आप बाबर और औरंगजेब जैसे आक्रमणकारियों के नाम से बनी सड़कों का नाम बदलेंगे तो साड़ी सेक्युलर ज़मात का नंगा नाच शुरू हो जाएगा आप कसाब अफज़ल और याकूब जैसे दुर्दांत आतंकवादियों की फांसी के वक़्त सेक्युलरों को सुप्रीम कोर्ट में हाहाकार करते हुए देख सकते हैं ……. लेकिन कहीं अगर आपने गौहत्या विरोध की बात की , कहीं आपने वन्देमातरम की बात की, कहीं आपने भड़काऊ तकरीरों के लिए विरोध जताया , वही देश का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप खतरे में आने लगता है , तमाम चैनलों पर सेक्युलर पैनलिस्ट रोते बिलखते दिखाई देंगे कई सेक्युलर नेता जो कभी कभी इस देश के संविधान को ही मानने से इनकार कर देते हैं देश की न्यायपालिका को सरे आम कोसते दिखते हैं जो भारत के प्रधानमन्त्री जिन्हें देश के १२५ करोड़ लोगों ने चुना है उन्हें शैतान, ज़ालिम,दरिंदा जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं वो भारत में घट रही कथित साम्प्रदायिक घटनाओं को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने की कवायद तक शुरू कर देते हैं , और ठीक भी है जिन लोगों को इस देश के क़ानून , संविधान, न्यायप्रक्रिया और यहाँ तक की देश की प्रणाली से कोई लेना देना न हो उनसे ऐसी उम्मीद करना बेमानी कहाँ है ?
लेकिन सबसे बड़ा सच तो ये है कि भारत का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप ही आज भारत की अखण्डता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है ……. जो कथित सेक्युलर जीव यहाँ भारत में सीना थोक कर ये बयान दे देते हैं कि हां वो बीफ खाते हैं और कोई उन्हें मार दे अगर वही लोग यहीं भारत में ही मुहम्मद का कार्टून बनाने का अगर जिक्र तक कर दें तो धर्मनिपेक्षता की असल परिभाषा उनके समझ में आ जाएगी …………..
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